मुझे आदत नहीं बातों की कुछ कर दिखाना चाहती हूं रात को रवि धरती को स्वर्ग बनाना चाहती हूं
मेरी मंजिल के दरवाजे भले ही बंद हैं हिम्मत और मेरे हौसले बुलंद है । फनाह कर सकूं दरिंदों को ऐसी साजिश बनना चाहती हूं। दिवाली में रंग, में होली में आतिश चाहती हूं ।
सामने मेरे पहाड़ बड़े या दीवारें कितनी ही ऊंची हो मुझ से टकराने वालों की आंखें हमेशा नीची हो । जीत ना पाऊं फिर भी मुकाबला करना चाहती हूं । इतिहास के पन्नों में अपना भी नाम लिखना चाहती हूं।
क्यों है रहा में हमें इतने काटे दिए हैं। क्यों हर मंथन के विष हमने पिए हैं।
सहानुभूति का पात्र नहीं ,मैं विश्वास चाहती हूं। ज्यादा कुछ नहीं बस थोड़ा सम्मान चाहती हूँ
सोनम शर्मा
No Matter what you think Iam going to 🤘 rock
Beautiful words
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Thanks 😄
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lovely
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Thanks alot
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🙂
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😃
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